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नाटक-एकाँकी >> मुगल महाभारत : नाट्य चतुष्टय

मुगल महाभारत : नाट्य चतुष्टय

सुरेन्द्र वर्मा

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :936
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16626
आईएसबीएन :9789326352192

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क्लैसिक ग्रीक नाटक में एक महत्वपूर्ण श्रेणी Tetralogy थी अर्थात् चार सम्बद्ध नाट्य-कृतियों की इकाई। इसमें पहले तीन नाटक त्रासदी होते हैं और चौथा कामदी। संस्कृत नाट्य-शास्त्र की रसवादी रंगदृष्टि में ट्रैजिडी की अवधारणा नहीं थी और कॉमेडी मुख्यतः विदुषक के आसपास घुमती थी।

मुगल महाभारत : नाट्य-चतुष्टय क्लैसिकल ग्रीक और क्लैसिकल संस्कृत नाट्य-परंपराओं के रंग-तत्वों का समिश्रण एवं संयोजन है। यहां पहली तीन नाट्य रचनाएँ त्रासदी हैं और चौथी के गम्भीर आवरण में किंचित् हास्य-व्यंग्य की अन्तःसलिला। संस्कृत नाट्य प्रस्तावना की तर्ज पर चारों नाट्य-कृतियों में नट-नटी के जैसा विषय-प्रवेश भी किया गया है—अन्तर यही है कि इस नाट्य-युक्ति का निर्वाह मंच पर नट-नटी नहीं, उत्तराधिकारी युद्ध में वधित राजकुमार करते हैं। अंक एवं दृश्य-विभाजन संस्कृत नाट्य-शास्त्र के अनुसार है। आरंगजेब और दारा शिकोह के बीच उत्तराधिकार युद्ध मुग़ल साम्राज्य एवं भारत के लिए निर्णायक ही नहीं, पारिभाषिक भी साबित हुआ। भारत के इतिहास में पारिवारिक संकट ने महा अनर्थकारी ‘राष्ट्रीय’ आयाम न इससे पहले कभी लिया, न इसके बाद। यह इतिहास का ऐसा विध्वंसक मोड़ था, जब व्यक्तिगत द्वन्द्व और ‘राष्ट्रीय’ संकट की विभाजक रेखा इस तरह विलुप्त हुई कि राजपरिवार का विनाश और साम्राज्य का विघटन—ये एक ही त्रासदी के दो चेहरे बन गये।

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